वांछित मन्त्र चुनें

यु॒क्ष्वा ह्यरु॑षी॒ रथे॑ ह॒रितो॑ देव रो॒हितः॑। ताभि॑र्दे॒वाँ इ॒हा व॑ह॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yukṣvā hy aruṣī rathe harito deva rohitaḥ | tābhir devām̐ ihā vaha ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यु॒क्ष्व। हि। अरु॑षीः। रथे॑। ह॒रितः॑। दे॒व॒। रो॒हितः॑। ताभिः॑। दे॒वान्। इ॒ह। आ। व॒ह॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:14» मन्त्र:12 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:27» मन्त्र:6 | मण्डल:1» अनुवाक:4» मन्त्र:12


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अगले मन्त्र में भौतिक अग्नि के गुणों का उपदेश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव) विद्वान् मनुष्य ! तू (रथे) पृथिवी समुद्र और अन्तरिक्ष में जाने आने के लिये विमान आदि रथ में (रोहितः) नीची ऊँची जगह उतारने चढ़ाने (हरितः) पदार्थों को हरने (अरुषीः) लाल रंगयुक्त तथा गमन करानेवाली ज्वाला अर्थात् लपटों को (युक्ष्व) युक्त कर और (ताभिः) इनसे (इह) इस संसार में (देवान्) दिव्यक्रियासिद्ध व्यवहारों को (आवह) अच्छी प्रकार प्राप्त कर॥१२॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों को कला और विमान आदि यानों में अग्नि आदि पदार्थों को संयुक्त करके इनसे संसार में मनुष्यों के सुख के लिये दिव्य पदार्थों का प्रकाश करना चाहिये॥१२॥सब देवों के गुणों के प्रकाश तथा क्रियाओं के समुदाय से इस चौदहवें सूक्त की सङ्गति पूर्वोक्त तेरहवें सूक्त के अर्थ के साथ जाननी चाहिये। इस सूक्त का अर्थ सायणाचार्य्य आदि विद्वान् तथा यूरोपदेशनिवासी विलसन आदि ने विपरीत ही वर्णन किया है॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरेकस्य भौतिकस्याग्नेर्गुणा उपदिश्यन्ते।

अन्वय:

हे देव विद्वँस्त्वं रथे रोहितो हरितोऽरुषीर्युक्ष्व, ताभिरिह देवानावह प्रापय॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (युक्ष्व) योजय। अत्र बहुलं छन्दसि इति शपो लुकि श्नमभावः। (हि) यतः (अरुषीः) रक्तगुणा अरुष्यो गमनहेतवः। अत्र बाहुलकादुषच् प्रत्ययः। अन्यतो ङीष्। (अष्टा०४.१.४०) अनेन ङीष् प्रत्ययः। वा च्छन्दसि। (अष्टा०६.१.१०२) अनेन जसः पूर्वसवर्णम्। (रथे) भूसमुद्रान्तरिक्षेषु गमनार्थे याने (हरितः) हरन्ति यास्ता ज्वालाः (देव) विद्वन् (रोहितः) रोहयन्त्यारोहयन्ति यानानि यास्ताः। अत्र हृसृरुहियुषिभ्य इतिः। (उणा०१.९७) अनेन ‘रुह’धातोरितिः प्रत्ययः। (ताभिः) एताभिः (देवान्) दिव्यान् क्रियासिद्धान् व्यवहारान् (इह) अस्मिन् संसारे (आ) समन्तात् (वह) प्रापय॥१२॥
भावार्थभाषाः - विद्वद्भिरग्न्यादिपदार्थान् कलायन्त्रयानेषु संयोज्य तैरिहास्मिन्संसारे मनुष्याणां सुखाय दिव्याः पदार्थाः प्रकाशनीया इति॥१२॥अथ चतुर्दशस्यास्य सूक्तस्य विश्वेषां देवानां गुणप्रकाशनेन क्रियार्थसमुच्चयात् त्रयोदशसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति बोध्यम्। इदमपि सूक्तं सायणाचार्य्यादिभिर्यूरोपदेशनिवासिभिर्विलसनादिभिश्चान्यथैव व्याख्यातम्॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वानांनी कलायंत्र व विमान वगैरे यानांत अग्नी इत्यादी पदार्थांना संयुक्त करून त्याद्वारे या संसारात माणसांच्या सुखासाठी दिव्य पदार्थांचा उपयोग केला पाहिजे. ॥ १२ ॥
टिप्पणी: या सूक्ताचाही अर्थ सायणाचार्य इत्यादी विद्वान व युरोप देशवासी विल्सन इत्यादींनी विपरीत लावलेला आहे.